Thursday, January 16, 2014


महाभारत के कर्ण को याद कर मुझे केजरीवाल याद आते हैं।

कर्ण यहाँ भी षडयंत्र से मारा जाएगा।अपना रथ का पहिया गड्ढे से निकाल रहा था।युद्ध न हुआ राजनीति हो गई।मुसीबत के समय अपना फँसा पहिया खुद ही निकालना पड़ता है।जो नहीं निकाल पाते है वह मारे जाते है।आप कितने बड़े तीसमार खान हों ? दुर्योंधण के किचन कैबिनेट के सदस्य ही सही, पर जब आप कहीं फँसते हो तो कोई मदद को नहीं मिलता।फिर तीरंदाज होना अलग बात है, रथ का पहिया निकालना अलग बात है।

इतिहास में और आज की राजनीति में अच्छे धुरंधर फँसने पर अपना पहिया नहीं निकाल पाए और मारे गए। कर्ण, जो सूर्य का पुत्र था, का व्यक्तित्व मारक था।जिसे दूर से भी देखकर कुंती के मन में हूक उठती थी, क्या व्यक्तित्व रहा होगा, जरा सोचिए ! जो शख्स यार की यारी के खातिर दुर्योधन का साथ दे रहा हो और वीरता और साहस में अर्जुन के बराबर का माना जाता हो, वह भी अकेले पड़ने पर राजनीति का शिकार हो जाता है। तो भला आम इंसान की क्या बिसात ? केजरीवाल भी आज की राजनीति के कर्ण लगते हैं।संभल कर अपने साथ ही across the party के दुर्योधनो पर नजर रखनी होगी।राजनीति है, कभी भी महाभारत शुरू हो सकती है........

 

Monday, December 16, 2013

" गाँव की छाँव "

                                                           
धूल पूरित उस डगर पर लोटती मैँ खेलती
 खिलखिलाती बेलियोँ को चूमती व सूंघती
 अरहरोँ की डालियोँ से मुस्कुरा के पूछती...
सुन ! बसंती  पवन मेँ किस तरह तूं झूलती ?
 
भोर की पहली किरण ज्योँ स्वर्ण विखरी खेत मेँ
ओस विखरी दूब पे यूं मोतियोँ के वेश मेँ ;
पीले सरसोँ की महक, रुप को संभालती
 गाँव के पनघट पे बैठी मस्त घटा सी झूमती ।
 सुन ! फुदकती डालियोँ पर खग सभा को देख कर
 नील लव लव भरे गगन को किस तरह तूं चूमती ?
 
आम्र लद-लद डालियोँ पर ऊँघती व झूलती,
गुल से लिपटी तितलियोँ को छेड़ती व पूछती...
छोटे तेरे पँख हैँ,सौ रंग इसमेँ हैँ भरे,
ऐ सुहानी मस्त अल्हड़ किस डगर पे तूं चली ?!
 
 झूमती बचपन हमारी खेलती उस छाँव मेँ,
याद आयी वो दोपहरी गुजरी है जो गाँव मेँ
छाँव पीपल कि प्यारी व सुहानी सांझ थी,
दीप झिल मिल ज्योँ सितारे जुगनू की बारात थी।
 
दूर खलिहानो से उड़ती धूल की डोली उठी
मस्त वृष के गले लिपट घंटियाँ भी बोलती
छोड़ बाबुल की गली बेटियाँ घर को चली
गाँव के इस छाँव मेँ खेली नन्ही कली,
 पुष्प बन सुवाशित करे अब और की बगिया कहीँ।

 

 
 
:-)

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Saturday, November 16, 2013

दूकान

                                                       
हमारे देश मेँ बाजार के हर मोड़ पर दुल्होँ का दूकान लगता है। दुल्हा पुरुष होने के नाते स्वयं ही बुद्धिजीवियोँ की जमात मेँ शामिल हो जाता है। बुद्धिजीवि, विभिन्न केटेगरि के होते हैँ। केटेगरि वायज इनका मुल्यांकन होता है।
केटेगरि जानने से पहले ज्यादा जरुरी बुद्धिजीवि कि परिभाषा जानना है।
बुद्ध का आचरण करने बाला बुद्धिजीवि होता है।
क्या
.....?!
ये बुद्ध कौन है
?
महात्मा बुद्ध , संसार को सत्य, अहिँसा, करुणा और प्रेम का संदेश दिया था।

माफ करना सर, किस युग मेँ जी रहे हो आप...!! ये मॉडल आउट ऑफ स्टॉक है। हमारे क्या बाजार के किसी भी दूकान मेँ ये मॉडल नहीँ मिलेगा। हाँ हमारे पास कुछ आधुनिक और बेहद मॉर्डन खयाल के दुल्हे उपलब्ध हैँ, जो बुद्धिजीवि कहलाते हैँ। आप कहेँ तो कुछ दिखला दूँ। आपको खरीदना तो है ? हाँ भैय्या खरीदना तो है। अपना बजट बताऐँ। बजट का क्या है..... आप दिखाना शुरु करेँ, पसंद जाए तो बजट की परवाह नहीँ।

तो देखिए

1.
डाँक्टर साब - Rs/25 lac.
2.I.I.T from Mumbai - Rs/20 Lac+ 4 Wheeler.
3.
बैँक मैनेजर - Rs/ 15 Lac. डिसकाउंट मिल सकता है।

4.
ये एक बेहतरीन पीस है टु इन वन। एक नजर मेँ पसंद आएगा।
ये एक पत्रकार है , दो तीन किताबेँ भी लिख चुके हैँ। समाज मेँ बुद्धिजीवियोँ के मँच पर अपनी विद्वता का झण्डा गाड़ चुकेँ हैँ।
इनका मूल्य मैँ आपको बता ही नहीँ सकता..... आते हेँ, इन्हे देखते हैँ और खुद ही कहते हैँ मैँ 25 लाख दूँगा, मैँ 30 लाख दूँगा। अरे एक ने तो 40 लाख तक मेँ खरीदने की कोशिश की, पर बेचा नहीँ ।आप कहेँ इसका मूल्य आप क्या लगाते हैँ !!
माफ करना भैय्या! ये इतने लाजबाब हैँ कि इनकी बिमारी लाईलाज है। हम इनकी बोली लगाने मेँ दिलचस्पी नहीँ रखते।....